मूत्रकृच्छ – Strangury
परिचय:
मूत्रकृच्छ यानी पेशाब में रूकावट होना। इसमे मूत्राशय (वह स्थान जहां पेशाब एकत्रित होता हैं) में स्थित पथरी के मूत्र नली में पहुंचने के कारण मूत्र में रूकावट करती है। गुर्दों के रोग में भी पेशाब में रुकावट होती है। जिससें पेशाब करने में बहुत ही जलन होती है। यह सक्रमण रोग भी है जिसमें इस रोग से ग्रस्त रोगी दूसरे से संभोग करता है और दूसरे को भी यह रोग हो जाता है। यह कई प्रकार से होता है जिनमें या आठ है:-
वातज, पित्तज, कफज, त्रिदोषज, अश्मरीजन्य, मलावरोध जन्य, मूत्रघात या क्षतजन्य और शुक्रक्षरणावरोधजन्य।
वातज मूत्रकृच्छ में मूत्रेन्द्रिय और मूत्राशय में भारीपन, खुजली और पेशाब सफेद होता है। त्रिदोषज में तीनो दोषों के मिश्रण से हो सकता है। और दर्द भी होता है। लिंग लाल और पेशाब का रंग पीला होता है।
कफज मूत्रकृच्छ में लिया और मूत्राशय में भारीपन, खुजली और पेशाब सफेद होता है। पेशाब धीरे-धीरे, दो धारों में और दर्द के साथ होता है।
मलावरोधजन्य में, मलाशय में मल की गांठें अड़ने और सुद्दे पड़ने आदि कारणों का प्रभाव मूत्रेन्द्रिय पर भी पड़ता है। मूत्रोत्सर्ग मे दर्द के साथ, मल की बदबू भी सम्भव है। मूत्रेन्द्रिय में आघात या मूत्र रुकने से आघात या क्षतादि के कारण मूत्रोत्सर्ग के समय अधिक दर्द होता है। शुक्रक्षरण को बलपूर्वक रोकने के कारण मूत्रोत्सर्ग के समय ज्यादा कष्ट का अनुभव होता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम:
हिन्दी | रुक-रुककर पेशाब का आना। |
अंग्रेजी | गिनोरिया। |
अरबी | कष्ट मूत्र। |
बंगाली | मूत्रकृच्छ। |
गुजराती | पेशाब मा बडतारा, कठोर के पेशाब अवुण। |
कन्नड़ | मूत्र कटु। |
मलयालम | वेदनयोटु कूटियमुथ्रथाटवु। |
मराठी | कालमारून लायविल होणे। |
तमिल | सोट्टुमूत्रम। |
कारण:
पुरुषों में प्रोस्टेट ग्लैड में सूजन होने से मूत्र मे अवरोध की विकृति हो सकती है। स्त्रियों में गर्भाशय की विकृति के कारण मूत्रकृच्छ हो सकता है। गर्मी के महीनों में यह ज्यादा गर्मी से होता है। छोटे बच्चे भी इस से रोग ग्रस्त हो जाते है। यह रोग ज्यादा चाय-कॉफी और शराब पीने वालो को होता है। शराब पीने से ज्यादा समय तक कब्ज बनी रहने से गुर्दो में सूजन होने से मूत्रकृच्छ हो जाता है।
राई आदि तेज पदार्थ या औषधियों का सेवन करने, ज्याद मेहनत करने, सूखा भोजन, खाली पेट शराब पीना, समुद्री मछली और बरसात मे डूबे पशुओं का मांस खाने, पेशाब को ज्यादा देर तक रोकने, ज्यादा भोजन करने, ज्यादा नाचने और घुड़सवारी के समय घोड़े को तेज दौड़ाने के कारण भी मूत्रकृच्छ का रोग होता है।
लक्षण:
इस रोग में पेशाब ज्यादा दर्द और जलन से भरा होता है। बूंद-बूंद करके या कच्चे खून के साथ थोड़ा-थोड़ा होता है। इसमें नाभि या पेडू के नीचे जांघों और मूत्रनली में बहुत ही पीड़ा होती है। यह रोग लगभग सुजाक ही कहलाता है मगर इसमें सुजाक की तरह दाने ही नहीं निकलते हैं।
भोजन तथा परहेज:
पुराने चावल, गाय का दूध, मट्ठा, पुराना सफेद पेठा, जंगल देश के पशु-पक्षियों का मांस, मिश्री, परवल, खजूर, सुपारी, ताड़फल का गूदा, शीतल पानी, शर्बत, बैंगन, केले का फूल, कागजी नींबू, रोटी, मीठे फल और दूध की लस्सी खाने योग्य होती है।
सूखा भोजन, तिल की गजक, रेवड़ी, तेल में तले या भुने पदार्थ, सरसों का साग, उड़द, टेंटी, लाल मिर्च, दही, गुड़, रूखे, भारी और खट्टे पदार्थ, तेज शराब, रात में जागरण और चिन्ता शोक न करने योग्य होता है।
विभिन्न औषधियों से उपचार-
1. सोंठ: पेशाब में रुकावट और जलन हो तो सोंठ को खूब बारीक चूर्ण बनाकर 3 ग्राम चूर्ण, दूध में मिश्री मिलाकर सेवन करने से बहुत लाभ होता है।
2. आंवला :
- आंवला, असगंध, गोखरू, सोंठ और गिलोय आदि सभी को 10-10 ग्राम लेकर 400 मिलीलीटर पानी में डालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से मूत्र करने में रुकावट और जलन खत्म होती है।
- 25 ग्राम आंवले को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनायें। 25 मिलीलीटर काढ़े के बचने पर थोड़े-से गुड़ के साथ खाने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) की विकृति खत्म होती है। इसके साथ दर्द, रक्तपित्त और जलन में भी लाभ होता है।
- आंवला, मुनक्का, बिदारीकन्द, मुलहठी और गोखरू को बराबर मात्रा में लेकर 20 ग्राम लेकर कूट लें और 375 मिलीलीटर पानी में पकायें। थोड़ा पानी बचने पर छानकर ठंडा करें। फिर 20 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से भंयकर मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) रोग भी ठीक हो जाता है।
3. धनिया:
- 400 मिलीलीटर पानी को उबालकर उसमें 25 ग्राम धनिया को डालकर रख दें। 4-5 घंटे के बाद उस पानी को छानकर मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) के रोगी को पिलाने से पेशाब तेजी से निकल जाता है।
- जब ज्यादा परेशानी हो तो भोजन करने के बाद मट्ठे या छाछ में हरा धनिया पीसकर पी लें इससे पेशाब की रुकावट दूर होगी।
- हरे धनिया की पत्तियों का रस 20 मिलीलीटर और 10 ग्राम चीनी मिलाकर लें अगर एक बार मे आराम न आये तो दुबारा लें।
- मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) में, रात को कोरी हांडी में 500 मिलीलीटर उबलता हुआ पानी भरकर उसमें 30 ग्राम आधा कुटा धनिया डाल दें। सुबह उसे मसल-छानकर 30 ग्राम बतासे में डाल दें। इसे दिनभर में 5 बार 5 हिस्से करके पिला दें। इससे पेशाब में खून का आना, रुकावट, दर्द, जलन और बेचैनी दूर हो जाती है।
- धनिया, गोखरू और आंवले का काढ़ा शहद और घी में मिलाकर पीने से मूत्रघात, मूत्रकृच्छ और शुक्राणु के दोष दूर होते हैं।
4. दारूहल्दी: पेशाब की बीमारी को दूर करने के लिए, दारूहल्दी को पीसकर चूर्ण बना लें इसमें से 3 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर खाने से लाभ होता है।
5. नारियल का पानी: नारियल का पानी 100 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में कई बार पीने से भी पेशाब की जलन व बीमारी दूर होती है।
6. गाजर: गाजर का रस 200 मिलीलीटर रोज पीने से पेशाब के रोग नहीं होते हैं।
7. छोटी इलायची:
- इलायची को पीसकर दूध के साथ लेने से पेशाब खुलकर आता है। और पेशाब की जलन दूर होती है।
- लगभग 2 ग्राम छोटी इलायची का बारीक चूर्ण दूध में मिलाकर पीने से पेशाब की रुकावट और जलन दूर होती है।
- छोटी इलायची, शीतलचीनी, रेवन्दचीनी, जीरा, कलमीशोरा और जवाखार को लेकर एक साथ बारीक पीसकर रख लें। फिर इसमें बराबर मिश्री मिलाकर खाने से मूत्रकृच्छ (सुजाक) में लाभ होता है।
- 2 ग्राम छोटी इलायची के बारीक चूर्ण को केले की जड़ के 20 मिलीलीटर रस के साथ लेने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।
- लगभग आधा से 1 ग्राम छोटी इलायची का बारीक चूर्ण आंवले के रस के साथ या दही के पानी के साथ घोंटकर देने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।
8. शहतूत: शहतूत के पत्तों का रस 10 मिलीलीटर में थोड़ी-सी शक्कर (चीनी) मिलाकर खाने से पेशाब की रुकावट और जलन दूर होती है।
9. ककड़ी:
- ककड़ी के बीज 3 ग्राम, मुलहठी 3 ग्राम और दारूहल्दी 3 ग्राम तीनों का चूर्ण बना लें और हल्के गर्म पानी के साथ दिन में 2-3 बार खायें। इससे पेशाब की रुकावट दूर होती है।
- ककड़ी का रस पीने से पेशाब ज्यादा आता है।
- ककड़ी के बीज, सेंधानमक और त्रिफला को बारीक पीसकर खाने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।
- ककड़ी का बीज 40 ग्राम, दारूहल्दी 10 ग्राम, मुलेठी 10 ग्राम को पीसकर चावल के मांड के साथ पीने से मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन) ठीक हो जाती है पेशाब खुलकर आता है।
10. अडूसा: पेशाब की बीमारी में अडूसा खायें या फिर अडूसे का रस 100 मिलीलीटर पीयें। इससे लाभ होगा।
11. छोटी कटेरी: छोटी कटेरी का रस 10 ग्राम शहद में मिलाकर पीने से पेशाब की रुकावट खत्म हो जाती है।
12. सूरजमुखी: सूरजमुखी के 10 ग्राम बीजों को खूब बारीक पीसकर पानी के साथ खाने से पेशाब की बीमारी में लाभ होता है।
13. कुड़ा: कुड़े की छाल को 5 ग्राम की मात्रा में लेकर दूध में पीसकर खाने से पेशाब की बीमारी में बहुत लाभ होता है।
14. जीरा: 50 ग्राम जीरा और 50 ग्राम मिश्री दोनों को कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर कपड़े से छानकर रखें। इस चूर्ण को 5 ग्राम मात्रा में पानी के साथ खाने से लाभ होता है।
15. एरण्ड: एरण्ड के 30 मिलीलीटर तेल को पानी में मिलाकर पीने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) की बीमारी खत्म हो जाती है।
16. प्याज:
- 1 लीटर पानी में 45 ग्राम प्याज के टुकड़े डालकर उबालें। इसे छानकर निकाले और शहद मिलाकर रोज 3 बार पीयें। इससे पेशाब खुलकर और बिना जलन के आता है और बार-बार पेशाब जाने की बीमारी को ठीक करता है।
- 50 ग्राम प्याज काटकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालें। एक चौथाई रह जाने पर निथारकर ठंडा करके दिन में 3-4 बार लें।
17. दूध: दूध गर्म करके उसमें थोड़ा गुड़ मिलायें और इसे पी लें इससे पेशाब खुलकर आता है। रुकावट दूर होती है। यह रोज 1 गिलास 2 बार पीयें।
18. नींबू: नींबू के बीजों को पीसकर नाभि पर रखकर ठंडा पानी डालें। इससे रुका हुआ पेशाब चालू हो जाता है।
19. शलगम: पेशाब रुक-रुककर आने पर एक शलगम और मूली कच्ची ही काटकर खा सकते और रस का भी सेवन करें।
20. कमरकल्ला: कमरकल्ला को पेशाब की रुकावट में लेना फायदेमंद होता है। इसकी सब्जी घी में छौंककर खानी चाहियें। इसे कच्चा ही सलाद के रूप में खायें।
21. केला: केले के तने का रस 4 चम्म्च, घी 2 चम्मच मिलाकर रोज 2 बार पिलाने से बंद हुआ पेशाब खुलकर आता है। यह पेशाब के साथ आने वाले घात यानी वीर्य को भी रोकता है।
22. मांड: आधा गिलास चावल के मांड में स्वादानुसार चीनी मिलाकर 2 बार पीने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।
23. एरण्ड का तेल: एरण्ड का तेल 4 चम्मच दूध में मिलाकर लिया जायें तो मल शोधन सरलता से हो जाता है।
24. छोटी हरड: छोटी हरड़ को बराबर मात्रा में सोंफ को मिलाकर 4-6 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ फंकी लेनी चाहियें। यह प्रयोग रात में सोते समय किया जाय तो ज्यादा फायदेमंद रहेगा।
25. मुनक्का: मुनक्का 10-15 पीस दूध के साथ लेने से भी फायदा होता है।
26. गुलकन्द: दूध के साथ 10-20 ग्राम गुलकन्द को खाना फायदेमंद होता है मगर ज्यादा कब्ज में बड़ी हरड़ का छिलकों को कूट-छान कर 20 ग्राम लें और उसमें 4 ग्राम शुद्ध जमालगोटा मिलावें फिर थूहर के दूध में मिलाकर चने के जितने गोली बनाकर खायें।
27. चंदन:
- चंदन का तेल 5 बूंद और बिरोजा का तेल 7 बूंद। दोनों को मिलाकर, बताशे में रखें और खाकर कच्चा या ताजा निकाला दूध पी लें। सुजाक में पूरा लाभ मिलता है।
- चंदन को घिसकर उसमें थोडी मिश्री को चावलों के पानी के साथ मिलाकर पिलायें और गर्म दूध को ठंडा कर दूध के साथ खायें तो लाभ होगा।
- चावल के धोवन में 20 ग्राम चंदन घिसकर थोड़ी मात्रा में, मिश्री और शहद मिलाकर सुबह शाम खाने से पेशाब की जलन दूर होती है।
- चंदन के तेल की 5 से 15 बूंदे को बतासे में डालकर दूध के साथ रोज 3 बार खायें। जलन महसूस होने पर 5 से 10 बूंद हर घंटे पर भी ले सकते हैं।
- चीनी 24 ग्राम कूट करके 200 मिलीलीटर गुनगुने पानी के साथ काढ़ा बनायें चौथाई बचने पर आग से उतार कर छान लें पानी ठंडा हो जायें तब उसमें असली चंदन तेल की 10 बूंदे डालें और मिला कर पीवें। यह एक मात्रा है। इस तरह का प्रयोग दिन में 3 बार करें बराबर 4 से 5 दिन तक खाने से आराम आता है।
28. सेमल: सेमल की नई मूसली का रस 4 चम्मच और मिश्री का चूर्ण आधा चम्मच को मिलाकर सुबह-शाम रोज खाने से इसका प्रभाव पड़ता है। प्रमेह और उससे से उत्पन्न रोगों में भी लाभदायक है। मूत्र साफ लाने और जलन दूर करने का भी इसमें गुण है। इस योग के साथ के साथ ही, सेमल की मूसली के रस की ही पिचकारी से ज्यादा लाभ होता है।
29. बरगद:
- बरगद के पत्तों को पीसकर और उसमें कलमी सोरा मिलाकर नाभि के नीचे लगाने से पेशाब खुलकर आता है। साथ में गोखरू के काढ़े में कलमी सोरा का अभ्यान्तरिक प्रयोग भी होना चाहिए।
- छाया में सुखाई हुई बरगद की छाल के पाउडर को 3 ग्राम शर्बत बजूरी या साधारण पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
- बरगद की जटा का महीन चूर्ण 9 ग्राम, कलमी शीरा, श्वेत जीरा, छोटी इलायची के बीज प्रत्येक का महीन चूर्ण 2-2 ग्राम मिलाकर पानी में घोटकर एक ही वटी बना कर सुबह-शाम गाय के धारोष्ण दूध के साथ सेवन करने से मूत्रकृच्छ व सुजाक मे लाभ होता है।
30. सेलखड़ी: सेलखड़ी, शीतलचीनी, बड़ी इलायची के दाने, कमलीशोरा, हल्दी और विरोजा को बराबर लेकर कूट लें और कपड़े से छान करके रखें रोज 3 से 6 ग्राम दूध की लस्सी के साथ दिन में 3 बार पीने से हर प्रकार का सुजाक रोग दूर होता है।
31. फिटकरी: फिटकरी, कमलीशोरा, सज्जीखार, सोहागा, नौसादर 10-10 ग्राम लेकर चूर्ण बनायें। 3 ग्राम 2 से 3 बार मिश्री (चीनी) मिले पानी के साथ लें इससे दर्द बंद हो जाता है। इसका सेवन रोजाना 3-4 दिन तक करें।
32. जवाखार: जवाखार 6 ग्राम को और 6 ग्राम मिश्री में मिलाकर खाने से हर तरह के मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) में लाभ देता है।
33. खिरेंटी: खिरेंटी की जड़ का काढ़ा पीने से हर प्रकार के मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) दूर होते हैं।
34. अदरक: पेशाब के समय दर्द और खून आ रहा हो तो सौंठ पीसकर छान कर दूध में मिश्री मिलाकर 2 बार यानी सुबह और शाम को पिलाने से सुजाक (गिनोरिया) के रोग में लाभ होता है।
35. नरसल: नरसल की जड़, डाभ की जड़, कास की जड़, साठी की जड़ तथा खरैटी की जड़ का काढ़ा बनाकर ठंड़ा होने पर शहद को मिलाकर पीने से पेशाब के साथ धातु का आना बंद हो जाता है।
36. खंभारी: खंभारी, पाषान भेद, शतावर जड़, कुटकी, वच, तालमखाने छारछबीला और गोखुरू का काढ़ा पीने से पेशाब के संग आने वाले धातु बंद हो जाता है।
37. कटेरी: कटेरी की जड़ का रस पीने से पेशाब के संग आने वाला धातु बंद होता है। sugar candy
38. ईख: ईख का गाढ़ा रस जवाक्षार डालकर पियें तो मूत्रघात व मूत्रावरोध (पेशाब करने मे कठिनाई) को समाप्त करता है।
39. आक: पुराने आक की जड़ की छाल, सेंधा नमक और छाछ इन तीनों को पीस कर गर्म करे और नाभि के नीचे लेप लगायें इससे मूत्रघात और मूत्रकृच्छ (पेशाब करने मे कष्ट या जलन होना) में लाभ होता है।
40. शिलाजीत: शिलाजीत को रोज दूध में डालकर पीने से मूत्राघात (पेशाब के साथ धातु का आना), मूत्रकृच्छ और पेशाब की रुकावट दूर हो जाती है।
41. चमेली: चमेली की जड़ बकरी के दूध में पीसकर पीने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।
42. कमल: कमल की जड़ गाय के मूत्र में पीसकर पीने से मल और पेशाब की रुकावट दूर होती है।
43. हजरत जहूर: हजरत जहूर पानी में पीस मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की रुकावट और मूत्रकृच्छ, पथरी दूर होती है।
44. फिटकरी: फिटकरी, कलमीशोरा दोनों बराबर भाग में लेकर, पीसकर कड़ाही में डाल कर हल्की आंच पर पकायें। रस होने पर केले के पत्ते पर उड़ेल दें और पीसकर शीशी में रख लें। यह चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में रोज ठंडे पानी के साथ लेने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने मे कष्ट या जलन होना) और मूत्र की रुकावट दूर हो जाती है।
45. पीपल: पीपल, इलायची, महुआ, पाषाणभेद, गोखरु, पित्तपापड़ा, अडुसा और एरण्ड की जड़ का काढ़ा बनाकर शहद को मिलाकर पीने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन होना), मल की रुकावट और पथरी दूर हो जाती है।
46. अदरक: अदरक रस, यवक्षार, हरड़ की छाल और सफेद चंदन का काढ़ा दही डालकर पीने से लाभ होता है और पथरी भी दूर होती है।
47. पथरचटा: पथरचटा का रस, जवाक्षार, पेठे का रस, तिलक्षार, पेठे के बींजो की मिंगी, गोखरू इन सबका काढ़ा रोज घी डालकर पीने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने मे कष्ट या जलन होना), मूत्राघात (पेशाब में धातु का जाना) और पथरी में लाभ करता है।
48. विदारीकन्द: विदारीकन्द, सरिवा, मेढ़ाश्रृंगी, गुर्च, हल्दी, वायविडंग, पंच तृण, पंचमूल को पीसकर पीने से मूत्रकृच्छ और पेशाब से निकलने वाला धातु दूर होता है।
49. शिलाजीत: छोटी इलायची, पाषाणभेद, शिलाजीत, पीपल, ककड़ी के बीज, सेंधानमक, केसर, साठी चावल के पानी में पीसकर पिलाने से दारूण मूत्रकृच्छ, मूत्रावरोध और पथरी खत्म हो जाती है।
50. बबूल की गोंद:
- गाय के घी के साथ तला हुआ बबूल का गोंद और मोचरस 10-10 ग्राम, शिलाजीत शुद्ध और सतगिलोय 6-6 ग्राम मस्तंगी, छोटी इलायची के दाने, वंश भस्म 3-3 ग्राम, इमली के बीज, बड़ा गोखरू और संगजहारत 20-20 ग्राम तथा शीतल चीनी 15 ग्राम लेकर सब को कूट छान लें और 2-3 ग्राम यह चूर्ण दूध की लस्सी के साथ पूयमेह में, मूत्र के साथ धातु, शुक्र के पतलेपन आदि रोगों में लाभ होता है।
- बबूल का गोंद 3 से 6 ग्राम सुबह शाम खिलाने से मूत्रकृच्छता मिट जाती है।
51. गोक्षुर: गोक्षुर फल और धान्यक का काढ़ा 14 से 28 मिलीलीटर का दिन में 3 बार प्रयोग करें।
52. गुडूची काण्ड: गुडूची काण्ड, शुण्ठी, आमलकी फल, गोक्षुर फल के रस में पका कर 250 मिलीलीटर को दिन में 3 बार प्रयोग करें।
53. कर्कटी: कर्कटी बीज के बारीक चूर्ण 12 से 24 ग्राम को कांजी कल्क और सेंधानमक के साथ दिन में 3 बार सुजाक (गिनोरिया) की बीमारी में सेवन करें।
54. सौंफ: पेशाब करने में यदि जलन महसूस हो तो, सौंफ आधा ग्राम से 2 ग्राम पीसकर और पानी में घोटकर बार-बार पीने से लाभ मिलता है।
55. मुलेठी: मुलेठी का चूर्ण 1 ग्राम से 4 ग्राम को दूध के साथ सुबह शाम खाने से पेशाब की जलन दूर होती है।
56. कुसुम: कुसुम के बीज का चूर्ण 2 से 4 ग्राम लेकर अंगूर के रस के साथ खाने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन होना) और पेशाब की जलन आदि में लाभ होता है।
57. यवक्षार:
- यवक्षार, चीनी, इन्द्रजौ, सत बिरोजा और कलमीशोरा 15-15 ग्राम लेकर बारीक चूर्ण बना लें और उसमें लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग चंदन का तेल डाल कर पर्याप्त खरल करके रखें। 1 से 2 ग्राम तक ठंडे पानी के साथ सेवन करें। इससे सुजाक (गिनोरिया) रोग जल्दी खत्म होता है।
- आधा ग्राम यवक्षार को लौंग या दालचीनी युक्त सुगंधित शर्बत में मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से गुर्दे में उत्तेजना पैदा होती है। जिससे पेशाब ज्यादा होता है, पेशाब की जलन और दर्द दोनों समाप्त होती है।
58. कलमीशोरा:
- कलमीशोरा आधा से एक ग्राम को गोखरू के काढ़े के साथ घोलकर पिलाने से पेशाब खुलकर आता है।
- कमली शोरा नाभि पर रखने से पेशाब की जलन दूर होती है।
- शोराकमली, बड़ी इलायची दाना 10-10 ग्राम पीस लें 4-4 ग्राम पानी या दूध लस्सी के साथ सुबह-शाम लें।
59. कचूर: कचूर की फांट सुबह शाम खाने से जलन कम होकर पेशाब साफ आने लगता है।
60. गठिवन: गठिवन के पंचांग(जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) या सिर्फ जड़ के रस के काढ़े को पीने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है। कुछ ज्यादा मात्रा का प्रयोग करें। गठिवन को बनतुलसी के नाम से भी जाना जाता है।
61. गुरुचि:
- गुरुचि, हरिद्रा और आंवला का काढ़ा या सिर्फ गुच का रस और शहद को मिलाकर रोजाना 3 बार खाने से पेशाब खुलकर आता है।
- गुरुच का चूर्ण आधा ग्राम से 1.80 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम खाने से पेशाब के रोग दूर होते हैं।
62. बड़ी कटेरी: बड़ी कटेरी की जड़ का चूर्ण, 1 ग्राम शहद के साथ रोज 2-3 बार रोज खाने से रोगी को सुजाक रोग में लाभ मिलता है।
63. भटकटैया: भटकटैया के जड़ का काढ़ा 20 मिलीलीटर से 40 मिलीलीटर तक शहद में मिलाकर या जड़ का रस 5 से 10 मिलीलीटर को शहद में मिलाकर सुबह-शाम लेने से सूजाक रोग में लाभ होता है।
64. छोटी गोखरू: पेशाब की परेशानी में छोटी गोखरू से सिद्ध किये हुए दूध को पीने से लाभ होता है।
65. बड़ी गोखरू: बड़ी गोखरू, मुलेठी और नागरमोथा को मिलाकर बने काढ़े को सुबह शाम खायें इससे पेशाब खुलकर और बिना जलन के आने लगता है।
66. फरहद: फरहद के पत्ते का रस 5 से 10 मिलीलीटर सुबह शाम खाने से पेशाब की जलन दूर होती है।
67. कास: कास की जड़ 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम घोंटकर और पीसकर पीने से मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन) दूर होती है।
68. पटेर (एरफा): मूत्रकृच्छ या मूत्र जलन में पटेर (एरफा) की जड़ 3 से 6 ग्राम सुबह और शाम घोंटकर और पीसकर रोज 2 से 3 बार पीने से लाभ होता है।
69. कुश: कुश और दाभी की जड़ 3 से 6 ग्राम सुबह शाम पीसकर ओर घोंटकर खाने से मूत्रकृच्छ की जलन दूर होती है।
70. हरी दूब: हरी दूब की जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से पेशाब करते समय जलन दूर होती है।
71. काली मूसली: काली मूसली की जड़ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम दूध में पेय बनाकर पीने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) में लाभ होता है।
72. शतावर: पेशाब की जलन व सुजाक रोग में शतावरि का चूर्ण 10 ग्राम से 20 ग्राम की मात्रा में चीनी और दूध के साथ पेय बनाकर पीने से लाभ मिलता है।
73. पाठा: पाठा की जड़ की फांट या घोल 40 मिलीलीटर सुबह शाम खाने से पेशाब की जलन और मूत्रकृच्छ(सुजाक) रोग दूर होता है।
74. ममीरा: ममीरा एक चौथाई ग्राम से आधा ग्राम को सुबह और शाम लेने से पेशाब खुलकर आता है।
75. विष्णुकान्ता: मूत्रकृच्छता के कष्ट में विष्णुकान्ता का रस 20 से 40 मिलीलीटर या फांट 40 से 80 मिलीलीटर सुबह शाम सेवन करने से मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन) की कष्ट दूर होते है।
76. छरिबेल: छरिबेल की जड़ का चूर्ण 3 ग्राम का काढ़ा, जीरा, मिश्री, और दूध के साथ बनाकर सुबह और शाम खाने से मूत्रकृच्छ, मूत्रमार्ग की जलन आदि दूर हो जाती है।
77. भुई आमला: भुई आमला का रस 10 से 20 मिलीलीटर सुबह शाम खाने से मूत्र की जलन दूर हो जाती है, पेशाब खुलकर आने से लगता है। रस के स्थान पर इसका सूखा चूर्ण 3 से 6 ग्राम भी ले सकते हैं।
78. बांझककोड़ा: मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन) में बांझककोड़ा के जड़ को दूध के साथ पीस लें और पीले इससे सुजाक (गिनोरिया) के रोग में लाभ नज़र आता है।
79. गोभी: मूत्रकृच्छ के कष्ट में गोभी के पंचांग(जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर सुबह शाम खाने से लाभ होता है।
80. गजबान: गजबान की फांट या घोल 40 से 80 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से पेशाब में जलन और पेशाब की मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन) दूर होती है।
81. जलकुम्भी: जलकुभी के पत्तों का काढ़ा पीने से और नाभि के नीचे बांधने से मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन) ठीक होती है।
82. चम्पा: मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन) में चम्पा के फूलों की फांट या घोल 40 से 80 मिलीलीटर सुबह शाम खाने से पेशाब की जलन मिट जाती है। और पेशाब खुलकर आने लगता है।
83. तुलसी: मूत्रकृच्छता में तुलसी की मंजरी या मंजरी सहित पत्तों को पीसे कर, घोट लें और मिश्री के शर्बत के साथ बार-बार पिलाने से मूत्रकृच्छता दूर होती है। अगर पत्तों या मंजरी न हो तो सिर्फ बीज 1 ग्राम से 2 ग्राम पीसकर और घोंटकर पिलाने से लाभ मिलता है।
84. सेमर: सेमर या सेमल के कच्चे (कोमल) फल पिलाने से पेशाब खुलकर आता है।
85. बरना: बरना की छाल, अपामार्ग, पुनर्नवा, यवाक्षार, गोखरू और मुलेठी आदि को मिला लें और काढ़ा बना लें 20 से 40 मिलीलीटर सुबह शाम खाने से मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन), अश्मरी (पथरी), मधुमेह (शूगर) और वस्तिशूल (नाभि के नीचे का दर्द) आदि कष्ट दूर होते है।
86. केले: केले के तने या फल का रस 40 मिलीलीटर रोज 3 बार खाने से पेशाब खुलकर आने लगता है। और जलन भी खत्म हो जाती है।
87. कटाई: मूत्रकृच्छता में कंटाई की छाल का काढ़ा 20 ग्राम से 40 ग्राम रोज 2-3 बार देने से पेशाब खुलकर आने लगता है।
88. छुहारा: छुहारे के पेड़ की गोंद 3 से 6 ग्राम सुबह शाम खाने से पेशाब के रोग दूर होते है। जलन भी खत्म होती है।
89. लघुपीलु की जड़: लघुपीलु की जड़ की छाल 10 ग्राम से 20 ग्राम पीसकर सुबह शाम खाने से पेशाब खुलकर आने लगता है। यह स्वेदजनन भी है।
90. गरहेडुआ: गरहेडुआ के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा मूत्रकृच्छ के रोग में 40 मिलीलीटर रोजाना 2 बार लेने से पेशाब खुलकर आता है।
91. ज्वार: ज्वार को लेने से भी मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन) में पूरा लाभ होता है।
92. रामदाना: रामदाना के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का मिश्रण 40 ग्राम से 80 ग्राम या काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर सुबह शाम खाने से मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन) दूर होती है।
93. छोटी लोणा: छोटी लोणा का फांट या घोल 40 से 80 मिलीलीटर सुबह शाम खाने से पेशाब खुलकर आता है। मूत्रकृच्छता भी दूर होती है।
94. चूका साग: चूका साग को लगातार खाने से पेशाब करने की जलन दूर होती है।
95. पिण्डारू फल (इसे कहीं-कहीं पीड़ाहर नाम से भी लोग जानते है): पिण्डारू फल मधुर होता है। इसके सेवन से पेशाब खुलकर आता है।
96. आर्तगल: आर्तगल के पत्तों को पीसकर रस निकाल ले और 10 से 20 मिलीलीटर सुबह शाम लें इससे पेशाब खुलकर आता है।
97. ऊंटकटारा: ऊंटकटारा की जड़ का रस 5 से 10 मिलीलीटर सुबह शाम शहद या शर्बत के साथ पीने से पेशाब खुलकर आता है।
98. काफी: काफी के बीजों को भूनकर, चूर्णकार और पानी में उबालकर पेय रूप में पीने से शरीर में उत्तेजना और पेशाब की वृद्धि होती है।
99. कासनीग्राम्य: कासनीग्राम्य के बीजों का चूर्ण मिश्री मिले शर्बत के साथ घोंट कर पिलाने से मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन) में समान रूप से उपयोगी है।
100. दुग्धफेनी: दुग्धफेनी की जड़ 4 से 12 ग्राम सुबह-शाम लेने से पेशाब खुल कर आता है।
101. पुदीना: पुदीने के पत्तों का शर्बत पीने से पेशाब खुलकर आता है।
102. पहाड़ी गंदना: पहाड़ी गंदना की सूखी पत्तियों का चूर्ण 3 से 6 ग्राम या शाखा के आगे के फूलो की फांट या घोल को 40 ग्राम से 80 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम खाने से पेशाब खुलकर आता है।
103. विरंजासिफ: विरंजासिफ के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर रोज 2-3 खुराक के रूप में खाने से पेशाब की जलन और मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन) में लाभ होता है।
104. रूमी मस्तगी: रूमी मस्तगी 0.48 से 0.96 ग्राम सुबह शाम खाने से पेशाब खुलकर आता है।
105. ईसबगोल: ईसबगोल के चूर्ण का शर्बत बनाकर पीने से पेशाब की जलन और मूत्रघात मिट जाता है।
106. इमली: इमली के पत्तों का रस पीने से मूत्रजलन ठीक हो जाती है।
107. गुलाब के फूल: गुलाब के 4-5 फूल सुबह-शाम 3 ग्राम मिश्री को मिलाकर खाने से 15 दिन में पेशाब की जलन दूर हो जाती है।
108. खांड: दूध 250 मिलीलीटर में पानी 250 मिलीलीटर में खांड को मिलाकर कर पीयें।
109. खमीरा: खमीरा संदल 6 ग्राम पानी से सुबह-सुबह लें।
110. फूलगोभी: पेशाब की जलन में फूल गोभी की सब्जी काफी लाभदायक होती है।
111. पेठा: पेशाब में जलन होने पर आगरे के पेठे के दो-दो टुकड़े रोज खायें। अगर पेठे का रस पीयें तो ज्यादा फायदेमंद होता है।
112. तोरई: तोरई खाने से पेशाब की जलन दूर होती है।
113. गेहूं: गेहूं को रात में 12 ग्राम लेकर 250 मिलीलीटर पानी में भिगो दें। सुबह छानकर उस पानी में मिश्री मिलाकर रोज तीन बार पीने से पेशाब की जलन ठीक होती है।
114. मक्का: पेशाब करने में अगर जलन महसूस हो तो ताजे मक्के (भुट्टे) को पानी में उबाल कर उस पानी को छानकर मिश्री को मिलाकर पीने से आराम मिलता है।
115. दूध: कच्चे दूध में पानी मिलाकर 2 बार रोज पीने से लाभ होता है।
116. बादाम :
- 5 बादाम की गिरी को भिगोकर, छिलकर इनमें 7 छोटी इलायची और स्वाद के अनुसार मिश्री को मिलाकर पीस लें एक गिलास में पानी के साथ घोलकर सुबह-शाम सेवन करने से मूत्रक्च्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन होना) में आराम मिलता है।
- रात को गर्म पानी में बादाम को भिगों दें। सवेरे थोड़ी देर तक पकाकर उसकी पेय बनाकर 20 ग्राम से 40 ग्राम रोज लेने से लाभ होता है।
117. जौ: 1 कप जौ में 1 लीटर पानी डालकर उबालकर पी जायें। यह पेशाब की जलन मे बहुत ही लाभदायक है।
118. कतीरा: कतीरा पेशाब की जलन को दूर करता है। अगर रात में भिगोकर सुबह-चीनी मिलाकर खायें तो लाभ होगा।
119. पानी: ठंडे पानी या बर्फ के पानी में कपड़ा मिगोकर नाभि के नीचे बिछायें रखें, इससे पेशाब खुलकर आता है।
120. आंवला: हरे आंवले का रस 60 मिलीलीटर और शहद 30 ग्राम-इन दोनों को मिलाकर दिन में 3 बार पीने बराबर मात्रा 3 बार सेवन करने से पेशाब खुलकर आयेगा, जलन और कब्ज ठीक होगी।
121. अनार: अनार का शर्बत पेशाब की जलन मिटाता है। रोज 2 बार पीने से लाभ होता है।
122. फालसा: पेशाब की जलन को दूर करने के लिए फालसे खायें।
123. गेहूं: 12 ग्राम गेहूं रात को एक गिलास पानी में भिगो दें। सुबह-शाम उस पानी में 25 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन दूर होती है।
124. पत्थर चट्ट: पत्थर-चट्टा की छाल 10 ग्राम, बबूल की छाल 5 ग्राम और सफेद जीरा 3 ग्राम मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को शहद के साथ खाकर ऊपर से 100 ग्राम साठी के चावलों का मांड़ पीने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।
125. लूणी का साग: 40 मिलीलीटर लूणी के साग के रस में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।
127. केला: केले के रस में गाय का पेशाब को मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है।
128. चौलाई: 20 ग्राम चौलाई के पत्ते पानी में पीसकर छान लें, 125 मिलीलीटर शरबत बना लें और 1 ग्राम जवाखार डालकर पियें इससे पथरी की वजह से पेशाब का रुकना दूर हो जायेंगा।
129. पेठा: पेठे के 40 मिलीलीटर रस में थोड़ी से हींग और जवाखार को मिलाकर पीने से मूत्र रोग और पथरी मिट जाती है।
130. चंपा के फूल: चंपा के फूलों का शर्बत बना कर पीने से पथरी और पेशाब के रोग मिट जाते है।
131. मक्खन: 1 से 3 ग्राम क्षार गर्म पानी के साथ दिन में 3 बार देने से पेशाब करने में परेशानी (मूत्रकृच्छ्) रोग में आराम मिलता है।
132. मीठा नीम: मीठे नीम की जड़ के 20 ग्राम या उसके पत्तों के 40 मिलीलीटर रस में 1 ग्राम इलायची दानों का चूर्ण डालकर पीने से पेशाब करने में रुकावट को मिटता है और पेशाब साफ आता है।
133. छाछ: छाछ में गुड़ मिलाकर पीने से मूत्रकृच्छ मिटता है।
134. छोंकर: छोंकर के फूलों को गाय के दूध में पीसकर उसमें पिसा हुआ जीरा और खांड को मिलाकर पीने से मूत्रकृच्छ नष्ट हो जाता है।
135. चीनी: पानी में शक्कर मिलाकर और घी मिलाकर सेवन करने से जलन युक्त मूत्रकृच्छ मिटता है अथवा गर्म दूध में शक्कर डालकर और घी मिलाकर सेवन करने से जलनयुक्त मूत्रकृच्छ मिटता है। दही में शक्कर मिलाकर खाने से भी मूत्रकृच्छ मिट जाता है।
136. फिटकरी: सूजाक में पेशाब करते समय जलन होती है। इसमें पेशाब बूंद-बूंद करके बहुत कष्ट से आता है। इतना अधिक कष्ट होता है कि रोगी मरना पसन्द करता है। इसमें इसमें 6 ग्राम पिसी हुई फिटकरी एक गिलास पानी में घोलकर पिलाएं। कुछ दिन पिलाने से सूजाक ठीक हो जाता है।
137. अदरक: सौंठ पीसकर छानकर दूध में मिश्री मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
138. गंभारी: पूयमेह, मूत्रकृच्छता (पेशाब में करने में कष्ट या जलन) व वस्तिशोथ में गंभारी के फल और पत्तियों का 10-20 मिलीलीटर रस में गाय का दूध और मिश्री मिलाकर सेवन करने से मूत्र का गंदलापन दूर होता है, तथा वेदना (दर्द) शांत हो जाती है तथा शोथ (सूजन) कम हो जाता है।
139. गेंदा: 10 ग्राम गेंदे के पत्तों को पीसकर उसके रस में मिश्री मिलाकर दिन में 3 बार पीने से रुका हुआ पेशाब खुलकर आ जाता है।
140. शरपुंखा: मूत्रकृच्छ में इसके बीस से पच्चीस पत्तों को पीसकर जल के साथ उनमें तीन से चार नग कालीमिर्च मिलाकर पिलाने से बहुत लाभ होता है।
141. गोखरू:
- गोखरू की छाल के 20 ग्राम काढ़े में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग यवक्षार डालकर दिन में 2-3 बार रोगी को पिलाने से मूत्रकृच्छ (पेशाब मे जलन) दूर हो जाता है।
- गोखरू की पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) के 20 ग्राम काढ़े में 1 चम्मच शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से लाभ मिलता है।
- गोखरू के 100 ग्राम पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) को 500 मिलीलीटर पानी में 2 घंटे तक भिगोकर मसलकर और छानकर 20-20 ग्राम, सुबह, दोपहर तथा शाम को पीने से मूत्रकृच्छ (पेशाब मे जलन) में लाभ मिलता है।
- 14-28 मिलीमीटर फलों का काढ़ा दिन में 2 बार सेवन करने से मूत्रकच्छ (पेशाब करने मे जलन या कष्ट) के रोग मे लाभ होता है।
- 10-15 ग्राम गोखरू की जड़ तथा बराबर मात्रा में चावलों को एक साथ अच्छी तरह से उबालकर रोगी को पिलाने से मूत्रकृच्छ (पेशाब मे जलन) का रोग दूर होता है।
- गोखरू के 2 ग्राम चूर्ण में 2-3 कालीमिर्च और 10 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह, दोपहर और शाम को देने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) ठीक हो जाती है तथा नपुंसकता भी मिट जाती है।
- गोखरू के बीज और जड़, ककड़ी के बीज 5-5 ग्राम लेकर कांजी में पीसकर नाभि के नीचे लगाने से लाभ होता है।
- तुरंत पेशाब की जलन को रोकने के लियें गोखरू के 10 ग्राम बीज को 300 मिलीलीटर पानी में उबालकर 50 मिलीलीटर बच जाने पर थोड़ा-सा यवक्षार मिलाकर पीने से लाभ होता है।
- शीतलचीनी 3 ग्राम, गोखरू 4 ग्राम, अनार का छिलका 5 ग्राम, लाल चंदन 1 ग्राम, चंदन का तेल 1 चम्मच। सभी द्रव्य कुटे-छाने हुए हो, उन्हे चंदन के तैल में मिलाकर ठंडे पानी के साथ खाने से लाभ होता है।
- गोखरू, अमलतास का गुदा, दाख, डाभ की जड़, कांस की जड़, धमासा, पाषाणभेद और हरड़ का बारीक चूर्ण बनाकर पीने दारूण मूत्रकृच्छ (पेशाब करने मे कष्ट या जलन होना) खत्म हो जाता है।
- गोखरू, वंशलोचन और मिश्री के चूर्ण को कच्चे दूध में मिलाकर पीने से जलन मिट जाती है।
142. सफेद पेठा: 1 कप पेठे का रस और 1 चम्मच पिसी हुई हल्दी को मिलाकर पीने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने मे जलन) में लाभ होता है। पेठे के रस की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाने से से पेशाब खुलकर आता है।
143. इन्द्रायण: त्रिफला, हल्दी और लाल इन्द्रायण की जड़ तीनों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर 30 मिलीलीटर दिन में दो बार पीने से सुजाक में लाभ होता है।
144. ग्वारपाठा: 50 ग्राम घृतकुमारी के गूदे में शक्कर मिलाकर खाने से (मूत्रकृच्छ) पेशाब करने में जलन और दर्द दूर हो जाते हैं।
145. गूलर::
- रोजाना सुबह गूलर के 2-2 पके फल रोगी को सेवन करने से मूत्रकच्छ (पेशाब की जलन) लाभ मिलता है।
- गूलर की जड़ के रस में चीनी और काला जीरा मिलाकर सेवन करने से सूजाक (गिनोरिया) का रोग दूर होता है।
146. सरसों: इसके पत्तों के 5 मिलीलीटर रस को 10 ग्राम घी में मिलाकर दिन में 2 से 3 बार देने से सुजाक में लाभ होता है।
147. प्याज: 6 मिलीलीटर प्याज का रस, 4 ग्राम गाय का घी और 3 ग्राम शहद को मिलाकर सुबह और शाम चाटने से तथा रात को दूध पीने से हस्तमैथुन के कारण नपुंसकता (नामर्दी) और सुजाक प्रमेह का रोग दूर होता है।
148. निर्गुण्डी: निर्गुण्डी के पत्तों का काढ़ा बनाकर सुजाक की पहली अवस्था में ले सकते हैं। जिस रोगी का पेशाब बंद हो गया हो तो उसमें 20 ग्राम को 400 मिलीलीटर पानी में उबाल लें। जब चौथाई बचे काढ़े को 10-20 मिलीलीटर दिन में सुबह, दोपहर और शाम बार पिलाने से पेशाब आने लगता है।
149. उलटकंबल: उलटकंबल के ताजे पत्ते और टहनियों की छाल को बराबर मात्रा में शीतल (ठंडा) जल में तैयार किया फांट या घोल को सुजाक (गिनोरिया) के रोगी को पिलाने से बहुत होता है।
150. पुनर्नवा: पुनर्नवा की जड़ को गाय के मूत्र (पेशाब) के साथ देने से सब प्रकार के शोथ (सूजन) तथा पेट के रोगों को दूर करता है।
151. सेहुंड़: 20 ग्राम गोखरू के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) के साथ शतावर को 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर, छानकर उसमे 10 ग्राम मिश्री और 2 चम्मच शहद मिलाकर थोड़ा पिलाने से पेशाब में जलन और पेशाब की रूकावट खत्म हो जाती है या शतावरी व गोखरू के काढ़े को सुबह-शाम सेवन करने से और खाने की चीजों को खाने से तथा परहेज करने से मूत्रकृच्छ (सुजाक) रोग ठीक हो जाता है।
152. शलगम: एक शलगम और कच्ची मूली को काटकर मिलाकर खाने से लाभ होता है।
153. अमरबेल: अमरबेल का रस 2 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से कुछ ही हफ्तों में इस रोग में पूर्ण आराम मिलता है।
154. शीशम: मूत्रकृच्छ की ज्यादा पीड़ा में इसके पत्तों का 50-100 मिलीलीटर क्वाथ दिन में तीन बार पिलाने से लाभ होता है।
155. ब्राम्ही:- ब्राम्ही के 2 चम्मच रस में, एक चम्मच मिश्री को मिलाकर सेवन करने से पेशाब करने की रुकावट दूर होती हैं।
156. फालसा: फालसे की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट) और प्रमेह का रोग दूर हो जाता है।
157. लाल मिर्च– मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी) रोग में ईसबगोल की 3 ग्राम भूसी पर मिर्ची के तेल की 5 से 10 बूंदें को मिलाकर पानी के साथ खाने से पेशाब में जलन और अन्य परेशानी दूर होती है।
158. भांग: भांग और खीरा ककड़ी को पानी में घोंट-छानकर ठंडाई की तरह पिलाने से मूत्रकृच्छ मिट जाता है।
159. लहसुन– नाभि के नीचे लहसुन का लेप बना कर पट्टी बांधने से पेशाब की जलन दूर होकर पेशाब खुल कर आ जाता है।
160. लता करंज- लता करंज की 1-3 ग्राम जड़ के रस में नारियल का पानी और चूने का निथारे हुऐ पानी को बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से मूत्र नलिका का शोथ सूजन, जलन आदि दूर होकर पीव का बहना बंद करता है।
161. सिंघाड़ा– सिंघाड़े का क्वाथ खाने से मूत्रकृच्छ मिटता है।
162. नागरमोथा: सुजाक रोग के होने पर नागरमोथा का काढ़ा पीने रोगी को पिलाने से लाभ मिलता हैं।
163. अंकोल: इसकी 5 ग्राम जड़ का क्वाथ बनाकर पीने से मूत्र खुलकर होने लगता है तथा रोगी को आराम हो जाता हैं।
164. सूरजमुखी– सूरजमुखी के बीजों को महीन (बारीक) पीसकर बासी पानी के साथ पीने से लाभ होता है।
165. बबूल:
- बबूल की 10-20 कोपलों को 1 गिलास पानी में भिगोंकर खुले आसमान के नीचे रखे, और प्रात:काल उस पानी को निथारकर पीने से सूजाक और पेशाब की जलन में आराम मिलता है।
- 30 ग्राम बबूल की कोपलों को रात भर 1 गिलास पानी में भिगोकर कर सुबह मसल छानकर उसमें गर्म घी मिलाकर पिलायें, दूसरे दिन भी ऐसा ही करें, तीसरे दिन घी मिलाना छोड़ दे, और 4-5 दिन इसका हिम मिलाने से लाभ मिलता है।
- बबूल के 10 ग्राम गोंद को 1 गिलास पानी में डालकर उसकी पिचकारी देने से मूत्राशय (वह भाग जहां पेशाब एकत्रित होता हैं) की सूजन और सूजाक की जलन दूर हो जाती है।
- बबूल के 5-10 पत्तों को एक चम्मच शक्कर और चम्मच कालीमिर्च के साथ अथवा 5-6 अनार के पत्तों के साथ पीसकर छानकर पिलाने से सूजाक रोग मिट जाता है।
166. अंकोल: तिल का क्षार 4 ग्राम और अंकोल के फलों का गूदा 5 ग्राम दोनों को 2 चम्मच शहद में मिलाकर सुबह-शाम खाने से सुजाक रोग में लाभ होता है।
167. बांस : सुजाक के रोगी को चावल के पानी में बांस की राख और चीनी को मिलाकर रोगी को पिलाना चाहिए।
168. पलास:
- लगभग 20 ग्राम पलास के फूल रात भर 200 मिलीलीटर शीतल पानी में भिगोकर सुबह थोड़ी सी मिश्री मिलाकर पिलाने से गुर्दे का दर्द, मूत्र के साथ खून आना बंद हो जाता है।
- पलास के फूलों को उबालकर गर्म ही पेडू (नाभि) पर बांधने से रुका हुआ पेशाब, वृक्क शूल और सूजन नष्ट हो जाता है।
- ढाक की सूखी हुई कोंपले, ढाक का गोंद, ढाक की छाल और ढाक के फूलों को मिलाकर चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण में थोड़ी-सी मिश्री मिलाकर लगभग 10 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन दूध के साथ शाम को लेने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने मे कष्ट या जलन) को मिटता है।
168. ग्वारपाठा– ग्वारपाठे के 8 से 10 ग्राम गुदे में थोड़ी सी मिसरी मिलाकर 15 दिन तक खाने से सूजाक रोग ठीक हो जायेगा।
169. विदारीकन्द: विदारीकन्द, गोखरू, नागकेशर और मुलहठी का काढ़ा शहद मिलाकर सेवन करने से सुजाक (गिनोरिया) रोग मे लाभ होता है।
170. बबूल– 10 ग्राम बबूल की कोमल पत्तियां, 10 ग्राम ककड़ी के बीज, 5 ग्राम गोखरू और 10 ग्राम सफेद जीरा को पीसकर 20 ग्राम पिसी हुई मिश्री के साथ मिलाकर 5 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से सूजाक रोग खत्म हो जाता है।
171. भिंडी: भिंडी की सब्जी खाने से पेशाब की जलन दूर होती है। पेशाब खुलकर साफ आता है।
172. तिल:
- 1 से 2 ग्राम तने का क्षार दही के पानी के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) समाप्त हो जाती है।
- ताजे तिल के पौधे को 12 घण्टे तक पानी में भिगोकर उस पानी को पिलाने से या तिल के 5 ग्राम क्षार को दूध या शहद के साथ देने से पेशाब में जलन ठीक हो जाती हैं तथा पेशाब साफ आता हैं।
- तिल के बोंडों की राख, सेंधा नमक, दूध में मिलाकर पीने से मूत्रकृच्छ तथा पथरी दूर हो जाती है।
173. बेल:
- बेल के ताजे फल के गूदे को पीसकर दूध के साथ छानकर उसमें शीतल चीनी का चूर्ण हल्का-सा मोटा-मोटा करके डालकर पिलाने से पुराना मूत्रकृच्छ् (पेशाब करने में कष्ट या जलन) की बीमारी कम हो जाती हैं।
- बेल के कोमल ताजे पत्ते 6 ग्राम, श्वेत जीरा 3 ग्राम और मिश्री 6 ग्राम एक साथ पीसकर मिश्रण को खाकर ऊपर से पानी पीने से 6 दिन में ही पेशाब से सम्बंधी बीमारीयां दूर हो जाती हैं।
- बेल की जड़ को लगभग 20-25 ग्राम को रात में कूटकर, 500 मिलीलीटर पानी में भिगोकर, सुबह मसल दें, फिर छानकर मिश्री मिलाकर पीने से मूत्रजलन आदि की बीमारीयां दूर हो जाती हैं।
- बेल की जड़, अमलतास की जड़ प्रत्येक 25-25 ग्राम, कूटकर 500 मिलीलीटर पानी में पकायें। 125 मिलीलीटर शेष रहने पर सुबह सेवन करने से 3 में दिन मे पूरा लाभ होता हैं।
174. बेर:
- बेर की कोंपल और जीरे को इकट्ठा करके देने से मूत्रकच्छता (पेशाब करने मे कष्ट या जलन) में लाभ होता है।
- बेर के पत्तों को पीसकर नाभि के नीचे लगायें इससे जलन और दर्द मिट जाती है।
175. अपराजिता:
- अपराजिता के सूखे जड़ के चूर्ण के प्रयोग से गठिया, मूत्राशय की जलन और मूत्रकृच्छ्र (पेशाब करने में कष्ट या जलन) का नाश होता है। 1-2 ग्राम चूर्ण को गर्म पानी या दूध से दिन में 2 या 3 बार प्रयोग करने से लाभ होता है।
- अपराजिता की जड़ का बारीक चूर्ण को 3-6 ग्राम तक, शीतल चीनी 1.5 ग्राम, काली मिर्च एक, तीनों को पानी के साथ पीसकर तथा छानकर सुबह-सुबह सात दिन तक पिलाने से या मूत्रेन्द्रिय को उसमें डुबोये रखने से सूजाक में शीघ्र लाभ होता है।
- अपराजिता की 5 ग्राम जड़ को चावलों के धोवन के साथ पीस-छानकर कुछ दिन सुबह-शाम पिलाने से मूत्राशय की पथरी कट-कट कर निकल जाती है।
- अपराजिता की जड़ की फांट या घोल को सुबह और शाम पिलाने से पेशाब की जलन दूर होती है।
176. नारियल:
- नारियल के पानी में गुड़ और धनिये को मिलाकर पीने से पेशाब में जलन दूर होगी और पेशाब खुलकर आयेगा।
- कच्चे नारियल का पानी काफी मात्रा में पीयें।
- नारियल का पानी, निर्मली के बीज़, शक्कर (चीनी) और इलायची को पीसकर सेवन करने से खूनी पित्त और पेशाब की समस्या दूर होती हैं।
- नारियल के 10 फूल पीसकर हल्के पानी के साथ खाने से लाभ होता है।
- नारियल रोजाना 2 बार 50 ग्राम खाने से पेशाब खुलकर आ जाता हैं।
177. अंगूर:
- मूत्रकृच्छ्र (पेशाब करने में कष्ट या जलन) में 8-10 मुनक्कों और 10-20 ग्राम मिश्री को पीसकर दही के पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है।
- मुनक्का 12 ग्राम, पाषाण भेद, पुनर्नवा मूल तथा अमलतास का गूदा 6-6 ग्राम जौकुट कर यानी अच्छी तरह से पीसकर आधा किलो जल में अष्टांश काढ़ा सिद्ध कर पिलाने से मूत्रकृच्छ्र (पेशाब करने में कष्ट या जलन) और तदजन्य उदावर्त (पेट की कब्ज) को रोग भी दूर होता है।
- 8-10 नग मुनक्कों को बासी पानी में पीसकर चटनी की तरह पानी के साथ लेने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।
178. नीम:
- नीम का छाल को जौकूट यानी अच्छी तरह से पीसकर बने चूर्ण 40 ग्राम, को लगभग 3 लीटर पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में पकायें, 200 मिलीलीटर शेष रहने पर छानकर पुन: पकायें और 20 या 25 ग्राम कलमी शोरा चूर्ण चुटकी से डालते जाये और नीम की लकड़ी से हिलाते रहें, सूख जाने पर पीसकर छानकर रख लें। इस काढ़ें लगभग 1 ग्राम का चौथे भाग की मात्रा में रोजाना गाय के दूध के साथ सूजाक (मूत्रक्च्छता) के रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
- नीम की सींक और पत्तों के 25 मिलीलीटर रस को उन्नाब के साथ पिला सकते हैं।
179. गुड़हल:
- गुड़हल की 11 पत्तियों को साफ पानी में पीसकर और छानकर उसमें 8 ग्राम यवक्षार और 25 ग्राम मिश्री को मिलाकर, सुबह-शाम 2 बार पीने से सुजाक के रोग में लाभ मिलता है।
- पहले दिन 1 फूल, दूसरे दिन 2 फूल तथा पांचवे दिन 5 फूल बताशे या मिश्री के साथ खाएं फिर एक-एक फूल घटाते हुए दसवें दिन 1 फूल खाने से सूजाक रोग मे आराम आता है।
- गुड़हल के 2 फूल और बताशे को दिन में 2 बार एक हफ्ते तक रोजाना खाने से सूजाक के रोग में बहुत लाभ मिलेगा।
180. अलसी:
- अलसी 50 ग्राम, मुलेठी 3 ग्राम, दोनों को दरदरा यानी मोटा-मोटा कूटकर 325 मिलीलीटर पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में हल्की आंच में पकायें। जब 50 मिलीलीटर पानी शेष रह जाये तो छानकर 2 ग्राम कलमी शोरा मिलाकर 2 घंटे के अन्तर से 20-20 ग्राम पिलाने से मूत्रकृच्छ यानी पेशाब की जलन में बहुत आराम मिलता है। अधिक मात्रा में बनाकर 10-15 दिन तक ले सकते हैं।
- अलसी के तेल की 4-6 बूंदे मूत्रेन्द्रिय के छिद्र में डालने से सुजाक पूयमेह में लाभ होता है।
- अलसी और मुलेठी समभाग लेकर कूट लें। मिश्रण का 40-50 ग्राम चूर्ण मिट्टी के बर्तन में डालकर उसमें 1 लीटर उबलता पानी डालकर ढक लें। एक घंटे बाद छानकर इसमें 25 से 30 मिलीलीटर तक कलमीशोरा मिलाकर बोतल में रख लें। 3 घंटे के अन्तर से 25 से 30 मिलीलीटर तक इस पानी का सेवन करने से 24 घंटे में ही पेशाब की जलन, पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब में खून आना, मवाद आदि बहना और सुरसुराहट होना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।
- अलसी के 10 ग्राम और मुलेठी 6 ग्राम, दोनों को खूब कुचल कर लगभग 1 किलों पानी में मिलाकर अष्टांश काढ़ें को सिद्ध करके 3 घंटे के अन्तर से लगभग 25 मिलीलीटर काढ़े में 10 ग्राम मिश्री को मिलाकर सेवन करने से जलन तुरन्त खत्म होकर मूत्र साफ होने लगता है।
181. अजवायन :
- अजवायन के तेल की 3 बूंदे 5 ग्राम शक्कर में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करते रहने से तथा नियमपूर्वक रहने से सुजाक में लाभ होता है।
- 3 से 6 ग्राम अजवायन की फक्की गर्म पानी के साथ लेने से मूत्र की रुकावट मिटती है।
- 10 ग्राम अजवायन को पीसकर लेप बनाकर पेडू पर लगाने से अफारा मिटता है, शोथ कम होता है तथा खुलकर पेशाब होता है।
182. इन्द्रायण :
- इन्द्रायण की जड़ को पानी के साथ पीसकर और छानकर 5 से 10 ग्राम की मात्रा में पीने से पेशाब करते समय दर्द और जलन दूर हो जाती है।
- 10 से 20 ग्राम लाल इन्द्रायण की जड़, हल्दी, हरड़ की छाल, बहेड़ा, और आंवला को 160 मिलीलीटर पानी में उबालकर इसका चौथाई हिस्सा बाकी रह जाने पर काढ़ा बनाकर उसे शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब मे दर्द और जलन) का रोग समाप्त हो जाता है।
183. इलायची :
- गाय का पेशाब, शहद या केले के पत्ते का रस, इन तीनों में से किसी भी एक चीज में इलायची का चूर्ण मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
- इलायची के दानों का चूर्ण करके शहद में मिलाकर खाने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) में लाभ मिलता है।
- इलायची को दूध के साथ लेने से पेशाब की जलन दूर होती है, तथा पेशाब खुलकर आता है।
- इलायची के दाने का चूर्ण शहद में मिलाकर पीने से मूत्रकृच्छ मिट जाता है।
- इलायची और बांसकपूर 30-30 ग्राम लेकर चंदन के तेल में घोंटकर उसकी 14 गोलियां बना लेते हैं।
184. गन्ना :
- गन्ने के ताजे रस को भरपेट पीने से पेशाब खुलकर आता है एवं मूत्रसंबन्धी समस्त रोग दूर होते हैं।
- 40 से 60 मिलीलीटर गन्ने की ताजी जड़ का काढ़ा रोगी को पिलाने से पेशाब की जलन समाप्त हो जाती है।
- गन्ने के रस को पकाने के बाद जब रस आधा रह जाए तो ठंडा होने पर उसमें चौथाई शहद मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रख देते हैं या तो गन्ने का रस 12 भाग, गुड़ 1 भाग और शहद 2 भाग एक साथ मिलाकर चीनी के बर्तन में 2 महीने तक रखकर सिरका बना लेते हैं। इस सिरके को 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में पानी के साथ मिलाकर सेवन करने से मेद रोग, बुखार की जलन और मूत्रकृच्छ (पेशाब की जलन) के रोग में लाभ होता है।
185. गिलोय :
- गिलोय का रस वृक्कों की प्रक्रिया (गुर्दो की क्रिया) को तेज करके अधिक पेशाब का निष्कासन करता है तथा वात विकृति से उत्पन्न मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) के रोग में भी गिलोय के रस से बहुत लाभ होता है।
- गिलोय का रस 7.00 से 10.50 मिलीलीटर, पाषाणभेद लगभग आधा ग्राम से लगभग 1 ग्राम और शहद या चीनी मिले दूध के साथ रोज 3 बार खाने से पेशाब से सम्बन्धी सारे रोग खत्म होते है।
- गिलोय का पानी 100 मिलीलीटर लेकर उसमें शहद मिलाकर मूत्रकृच्छता (पेशाब करने में कष्ट या जलन) में लाभ मिलता है।
186. मूली :
- स्वर्णक्षीरी (पीली फूल और पत्तों कांटे वाली एक औषधि जो सितम्बर-अक्टूबर से मई-जून तक प्राय: हमेशा पाई जाती है, इसे सत्यानाशी भी कहते हैं) की जड़ की छाल को 6 ग्राम से 10 ग्राम तक पीसकर 250 मिलीलीटर मूली के रस के साथ पीने से सुजाक में लाभ हो जाता है।
- 30-40 ग्राम वजन की एक मूली की चार फांकें कर उन पर 1 ग्राम फुलाई हुई फिटकरी का महीन चूर्ण छिड़ककर रात का ओस में रख दें। प्रात: उन मूलियों का खाकर, उनका निकला हुआ पानी पीने से सुजाक की जलन और पीब आना बंद हो जाता है।
- गुर्दे की सूजन से होने वाले रोग में मूली का रस 20 मिलीलीटर रोज सुबह पीने से लाभदायक होता है।
- गुर्दे की खराबी से यदि पेशाब नही बन पा रहा हो तो मूली का रस 20 मिलीलीटर रोज पीने से लाभ होता है। इससे जलन भी दूर होती है।
187. चंदन :
- चावल के पानी को चंदन में घिसकर शहद और शक्कर के साथ पीने से मूत्रकृच्छ और रक्तातिसार मिट जाता है।
- एक बूंद चंदन का तेल बताशे या चीनी मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करें। यदि जलन अधिक हो तो पूयस्राव बंद (सूजाक) होने के बावजूद इसे 15 दिनों तक सेवन करने से लाभ होता है।
188. मेहंदी:
- मेहंदी के 50 ग्राम बर्फ में एक कलमीशोरा को मिलाकर प्रात:-शाम को पिलाने से इस रोग में लाभ मिलता है।
- मेहंदी के पत्ते 6 ग्राम लेकर आधे लीटर पानी में पकायें और छानकर गर्म-गर्म पी लें। लाभ होगा।
189. जवाखार :
- जवाखार 2 ग्राम, फिटकिरी भूनी 2 ग्राम और 2 दाने मिश्री को फांक कर दूध पी लें पथरी टूट-टूट कर निकल जायेगी।
- 2 ग्राम जवाखार को गाय की छाछ में मिलाकर पीने से पेशाब की जलन मिट जाती है।
- जवाखार को गोखरू के काढ़े में डाल कर पिलाने से मल की रुकावट दूर होती है।
190. बकायन:
- बकायन की छाल को पानी में घिसकर पीने से मूत्र रोग में लाभ होता है।
- बकायन के 8-10 सूखे फलों को 50 मिलीलीटर सिरके में पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा के कृमि संबन्धी रोग मिट जाते हैं।
नोट : अगर आपको कोई औषधि समझ नहीं आ रही है तो आप उसको किसी पर्चे पर लिखकर पंसारी के यहाँ से मंगा सकते है पंसारी देखकर दे देगा अन्य किसी सहायता के लिए आप कमेंट बॉक्स में लिख सकते है
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